हीरा धारण करने के लाभ Diamond Stone Benefits in hindi
हीरा धारण करने के लाभ और पहचान:- हीरा शुक्र ग्रह का रत्न होता है। हीरा धारण करने से शुक्र ग्रह को बल मिलता है और शुक्र से सम्बंधित फलों में वृद्धि होती है। शुक्र ग्रह आकर्षण, रोमांस, सुख-सुविधाओं और पत्नी का कारक ग्रह होता है। शुक्र का रत्न हीरा धारण करने से व्यक्ति में ऊपर बताए गए सभी फलों में वृद्धि होती है अर्थात इसको धारण करने से व्यक्ति में आकर्षण बढ़ता है, रोमांस का स्तर बढ़ता है, सुख-सुविधाओं में वृद्धि होती है, पत्नी सुख अच्छा मिलता है। इसके अतिरिक्त व्यक्ति की जन्म कुंडली में शुक्र जिस भाव में बैठा हो, जिस भाव पर शुक्र की दृष्टि हो और जिस भावों में शुक्र की राशियां वृषभ और तुला हो, हीरा धारण करने से उन भावों से सबंधित फलों में वृद्धि होती है। वृषभ और तुला राशि वालों के लिए हीरा लाभकारी होता है। मगर याद रहे हीरा धारण करने से पहले कुंडली में शुक्र की स्थिति देख लेनी चाहिए। यदि शुक्र ग्रह सही स्थान पर स्थित हो तभी इसका रत्न हीरा धारण करना चाहिए अन्यथा आपको लाभ के स्थान पर नुकसान हो सकता है। हीरा रत्न को धारण करने के भी कुछ नियम होते हैं। हम आपको आगे यह नियम बताते हैं कि कब हीरा धारण करना चाहिए और कब नहीं करना चाहिए।
हीरा रत्न धारण करने के नियम - यदि आपकी कुंडली में शुक्र मारक होकर बैठा है तब आप भूल कर भी शुक्र का रत्न ओपल, हीरा या फ़िरोज़ा धारण मत करें। अन्यथा आपको लाभ के स्थान पर हानि होगी। ओपल, हीरा या फ़िरोज़ा रत्न धारण करने के लिए कुंडली में शुक्र ग्रह योग कारक होकर किसी अच्छे भाव जैसे त्रिकोण भाव (1, 5, 9), केंद्र भाव (4, 7, 10) या किसी अन्य अच्छे भाव में बैठा होना चाहिए। यदि कुंडली में शुक्र योग कारक होकर भी कुंडली के किसी बुरे भाव जैसे त्रिक भाव या किसी अन्य बुरे भाव में बैठा हो तब किसी अच्छे ज्योतिष की परामर्श से रत्न धारण करना चाहिए। यदि आपको कुंडली में योग कारक और मारक ग्रहों की पहचान करनी नहीं आती है तो आप हमरे पेज योग कारक और मारक ग्रह पर क्लिक करके प्राप्त कर सकते हो।
रत्न क्यों धारण किया जाता है :- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति अपने पिछले जन्म के संचित कर्मों को साथ लेकर जन्म लेता है और उसके पिछले जन्म के संचित कर्मों के मुताबिक उसकी जन्म कुंडली का निर्माण होता है और उसके कर्मों के हिसाब से उसकी कुंडली में ग्रह उसको अच्छा और बुरा फल देने के लिए अलग अलग भावों में बैठते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 9 ग्रहों की रश्मियां प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावित करके उसको अच्छा या बुरा परिणाम देती हैं। ज्योतिष शास्त्र का गणित हमें यह बताता है कि हमारी जन्म कुंडली में कौन-कौन से ग्रह योग कारक अर्थात अच्छा फल देने वाले और कौन-कौन से ग्रह मारक अर्थात बुरा फल देने वाले बैठे हैं। जब हमें यह पता चल जाता है कि हमारे लिए कौन-कौन से ग्रह अच्छे और बुरे हैं तो सुभाविक बात है कि योग कारक ग्रह अर्थात अच्छा फल देने वाले ग्रहों की अधिक प्रभाव में रश्मियां हमारे ऊपर पड़ेंगी तो हमें अधिक अच्छे परिणाम मिलेंगे और यदि कम पड़ेंगी तो कम अच्छे परिणाम मिलेंगे। ऐसे ही यदि कुंडली में किसी योग कारक ग्रह अर्थात अच्छा फल देने वाले ग्रह का बल कम हो, वह सूर्य के साथ अस्त हो या षटबल में कमजोर हो तब उस ग्रह से सबंधित रत्न धारण करके उसके बल को बढ़ाया जाता है। किसी ग्रह का रत्न एक चुम्बक ( Magnet) की तरह कार्य करता है। किसी ग्रह से सम्बंधित रत्न उसकी रश्मियों को ग्रहण करके व्यक्ति में संचार करने का कार्य करता है। किसी व्यक्ति की कुंडली में कोई ग्रह जिस भाव में बैठा हो, जिन भावों पर उसकी दृष्टि हो, जिन भावों में उसकी राशियां हों या जो ग्रह के कारकत्व हो, ग्रह उसका फल ही देते हैं। ऐसे ही यदि कुंडली में मारक ग्रह अर्थात बुरा फल देने वाले ग्रहों से सम्बंधित रत्न धारण कर लिया जाये तो उस ग्रह का बल बढ़ने से बुरे परिणाम अधिक मिलने शुरू हो जाते हैं। इसलिए कभी भी मारक ग्रह का रत्न धारण मत करें।
हीरे की पहचान- हीरे की पहचान करने के लिए हीरे में 4 मुख्य बातों को देखा जाता है। हीरे की कीमत उसका रंग (Colour), पारदर्शिता (Clarity) , कटिंग (Cutting) और वजन (Weight) देख कर निश्चित की जाती है। इसका वजन कैरट (Carat) में निश्चित किया जाता है। एक कैरट (Carat) 200 मिलीग्राम का होता है और यदि एक हीरे की बात की जाये तो यह जितना वजन में ज्यादा होगा इसका मूल्य भी प्रति कैरट उतना ज्यादा होता जाता है। हीरे में भी काफी डुप्लीकेसी देखने को मिलती है। अच्छी गुणवत्ता वाला हीरा देखने में सफ़ेद पारदर्शी, चमकदार और वजनदार होता है। यदि आपने 50 सेंट (Cent) से अधिक वजन का हीरा खरीदना है तो कोशिश करें IGI या GIA से प्रमाणित हीरा ही खरीदें।
हीरा रत्न कब और कैसे धारण करें (When and How to wear Diamond)- हीरा रत्न को शुक्रवार वाले दिन को धारण करना चाहिए। हीरा रत्न को सदैव मध्यमा ऊँगली में धारण किया जाता है। धारण करने से पहले हीरे की अंगूठी को गंगाजल से शुद्ध कर लेना चाहिए और पूजा स्थान में रखकर शुक्र बीज मंत्र का 108 बार जाप करके धारण करना चाहिए।
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नोट- नवग्रहों के बीज मंत्र की विधि|
*सूर्य बीज मंत्र *चंद्र बीज मंत्र *मंगल बीज मंत्र
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