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राहु बीज मंत्र विधि और लाभ - Rahu Beej Mantra in hindi

राहु बीज मंत्र का महत्व Beej Mantra of Rahu in hindi राहु बीज मंत्र विधि और लाभ - राहु और केतु छाया ग्रह होते हैं। इनको अदृश्य ग्रह भी कहा जाता है। राहु को नाग का मुख भी कहा जाता है। राहु ग्रह का प्रत्येक कुंडली में बहुत अधिक महत्व होता है। यह ग्रह कुंडली के जिस भाव में बैठता है, जिस राशि के साथ बैठता है और जिन ग्रहों पर अपनी दृष्टि डालता है, उन सबको प्रभावित करता है। कुंडली में राहु को शनि से भी अधिक पापी ग्रह माना गया है। राहु को शनि का छाया ग्रह कहा जाता है। राहु की तीन दृष्टियां जिन ग्रहों और भावों पर पड़ती है वह सब राहु से प्रभावित होते हैं। कुंडली में यदि राहु अच्छी स्थिति में हो तब भी यह व्यक्ति को गलत कार्यों से ही सफलता प्रदान करता है क्यूंकि राहु का कारक शराब, नशीली दवायें, जुआ-खाना, जेल, चरस, हस्पताल आदि होते हैं और यह योग कारक अर्थात बलि होने पर भी व्यक्ति को इन क्षेत्रों के द्वारा सफलता प्रदान करते हैं। राहु व्यक्ति की बुद्धि को चतुर तो करता है मगर राहु व्यक्ति की बुद्धि को उल्ट कार्यों में ही लगाता है। राहु के शुभ होने पर व्यक्ति शराबखाने, जुए, कीटनाशक दवाएं, हस्पताल, शमशा

गुरु (बृहस्पति) बीज मंत्र विधि और लाभ -Beej Mantra of Brihaspati (Guru)

बृहस्पति (गुरु) बीज मंत्र  Beej Mantra of Brihaspati (Guru) गुरु (बृहस्पति) बीज मंत्र विधि और लाभ - बृहस्पति (गुरु) ग्रह को ज्ञान और अध्यात्म का ग्रह कहा जाता है। सभी देवताओं यहाँ तक कि शिव, विष्णु और ब्रह्मा के गुरु भी बृहस्पति ग्रह ही हैं। धनु और मीन राशियों के स्वामी बृहस्पति (गुरु) ग्रह हैं। बृहस्पति  सौम्य और देव ग्रहों की श्रेणी में आते  है। यदि किसी की कुंडली में बृहस्पति ग्रह योग कारक और बलि होकर बैठे हो तो वह व्यक्ति ज्ञानी और आध्यात्मिक होता है। यदि किसी की कुंडली में बृहस्पति (गुरु) ग्रह मारक होकर बैठे हो या कुंडली के त्रिक भावों में बैठे हों और विपरीत राज योग ना बन रहा हो तब व्यक्ति में आध्यात्मिक ज्ञान की कमी, समाज में प्रतिष्ठा की कमी, कार्य क्षेत्रों में बांधा आती है। बृहस्पति ग्रह का बीज मंत्र व्यक्ति की इन अड़चनों को ख़तम करता है। वैसे भी किसी भी राशि वाला यदि बृहस्पति बीज मंत्र का जाप करता है तो उसके ज्ञान में बहुत वृद्धि होती है और वह अपने ज्ञान से जगत में विख्यात होता है। याद रहे यदि आपकी कुंडली में बृहस्पति (गुरु) ग्रह मारक होकर बैठा हो या त्रिक भावों में बैठा हो तब

बाबा बालक नाथ चालीसा- Baba Balak Nath Chalisa in hindi

बाबा बालक नाथ चालीसा Baba Balak Nath Chalisa in hindi दोहा  गुरु चरणों में सीस धर करूँ मैं प्रथम प्रणाम,  बख्शो मुझको बाहुबल सेव करुं निष्काम,  रोम-रोम में रम रहा रूप तुम्हारा नाथ, दूर करो अवगुण मेरे, पकड़ो मेरा हाथ| चालीसा  बालक नाथ ज्ञान भंडारा,  दिवस-रात जपु नाम तुम्हारा| तुम हो जपी-तपी अविनाशी,  तुम ही हो मथुरा काशी| तुम्हरा नाम जपे नर-नारी,  तुम हो सब भक्तन हितकारी| तुम हो शिव शंकर के दासा,  पर्वत लोक तुमरा वासा| सर्वलोक तुमरा यश गावे,  ऋषि-मुनि तव नाम ध्यावे| काँधे पर मृगशाला विराजे,  हाथ में सुन्दर चिमटा साजे| सूरज के सम तेज तुम्हारा,  मन मंदिर में करे  उजियारा| बाल रूप धर गऊ चरावे,  रत्नों की करी दूर वलावें| अमर कथा सुनने को रसिया,  महादेव तुमरे मन बसिया| शाह तलाईयाँ आसन लाए,  जिस्म विभूति जटा रमाए| रत्नों का तू पुत्र कहाया,  जिमींदारों ने बुरा बनाया| ऐसा चमत्कार दिखलाया,  सब के मन का रोग गवाया| रिद्धि-सिद्धि नव-निधि के दाता,  मात लोक के भाग्य विधाता| जो नर तुम्हरा नाम धयावे,  जन्म-जन्म के दुख बिसरावे| अंतकाल जो सिमरन करहि,  सो नर मुक्ति भाव से मरहि| संकट कटे मिटे सब रोगा,  बालक

शुक्र बीज मंत्र विधि और लाभ - Beej Mantra of Shukra Grah

शुक्र ग्रह बीज मंत्र   Beej Mantra for Shukra Grah शुक्र बीज मंत्र जपने का महत्व - कुंडली में शुक्र ग्रह की स्थिति योग कारक और बलशाली होने पर व्यक्ति सुख-वैभव, ऐशो-आराम, सुंदर एवं सुशील पत्नी, भोगों का सुख आदि से संपन्न होता है| शुक्र दानव ग्रह होते हुए भी एक सौम्य ग्रह है|हम ऐसा भी कह सकते हैं कि शुक्र ग्रह सुख-सुविधाओं का ग्रह होता है| यह व्यक्ति को रंक से राजा बनाने वाला ग्रह होता है|  मगर यदि कुंडली में शुक्र की स्थिति अच्छी ना हो तब उस व्यक्ति को सुख-सुविधा में कमी, पत्नी सुख में कमी, पुरुष के शुक्राणुओं में कमी, समाज में प्रतिष्ठा की कमी होती है| यदि आपकी कुंडली में शुक्र मारक होकर बैठा है, शत्रु राशि में है या त्रिक भावों में बैठा है और किसी तरह का योग इसकी काट नहीं कर रहा तब आप शुक्र ग्रह के बीज मंत्र का जाप करके शुक्र ग्रह के कारकत्व को मारकत्व में बदल सकते हो| शुक्र ग्रह का बीज मंत्र व्यक्ति को सभी प्रकार के सुख देने में समक्ष होता है| शुक्र ग्रह की कृपा होने पर व्यक्ति जगत में विख्यात होने लगता है| यदि आप अभिनेता, मॉडलिंग जैसे क्षेत्र में जाने के इच्छुक हो तो आप शुक्र बीज मं

शनि बीज मंत्र विधि और लाभ - Beej Mantra for Shani dev in hindi

शनि ग्रह बीज मंत्र   Beej Mantra for Shani dev in hindi  शनि बीज मंत्र विधि और लाभ - सबसे धीमी चाल चलने वाले शनि देव यदि किसी व्यक्ति पर प्रसन्न हो जाएं तो उस व्यक्ति को रंक से राजा बना देते हैं और यदि शनि देव अपनी क्रूर दृष्टि किसी व्यक्ति पर डाल दें तो उस व्यक्ति को राजा से रंक भी बना देते हैं| शनि ग्रह को लेकर हमारे लोगों में काफी भ्रांतियां फैलाई जाती हैं कि यदि किसी व्यक्ति के ऊपर शनि की महादशा, अंतर दशा, ढैया (2.5 वर्ष), साढ़सति (7.5 वर्ष) की दशा चलती है तो शनि देव उस व्यक्ति को कष्ट देना शुरू कर देते हैं या कई लोग इंटरनेट या टेलीविज़न में अपनी राशि के आधार पर शनि का ढैया या साढ़ेसाती की दशा का फल देखना शुरू कर देते हैं| मगर आपको बता दें कि कुंडली में शनि की स्थिति देखने के लिए काफी कुछ देखना पड़ता है और फिर हम किसी परिणाम तक पहुँच सकते हैं कि शनि आपको अच्छा फल देंगे या बुरा फल देंगे| कुंडली में शनि की अच्छी या बुरी स्थिति देखने के लिए देखा जाता है कि शनि योग कारक है या मारक, शनि कुंडली के कौन से भाव में स्थित है, शनि सूर्य के साथ अस्त है कि नहीं, शनि शत्रु राशि में स्थित तो नहीं| यह

केतु बीज मंत्र विधि और लाभ -Beej Mantra for ketu in hindi

 केतु बीज मंत्र की सम्पूर्ण विधि और महत्व Beej Mantra of Ketu in Hindi केतु बीज मंत्र विधि और लाभ -केतु को सन्यास, वैराग्य और विरक्ति का कारक ग्रह माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रत्येक ग्रह के कुछ विशेष गुण और विशेष अवगुण होते हैं। ऐसे ही केतु ग्रह पापी ग्रह होते हुए भी यदि कुंडली में अच्छी स्थिति में हो तब व्यक्ति को विशेष गुण प्रदान करता है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में केतु की स्थिति अच्छी हो तब केतु व्यक्ति को सन्यास और वैराग्य की और लेकर जाता है, मगर स्थिति अच्छी होने पर यह सन्यास और वैराग्य व्यक्ति को यश और प्रतिष्ठा दिलाते हैं। यहाँ पर सन्यास और वैराग्य का अर्थ यह नहीं कि व्यक्ति घर-बार छोड़ कर जंगलों में चला जाता है यहाँ पर सन्यास और वैराग्य से अर्थ है कि व्यक्ति संसार में रहते हुए भी सांसारिक वस्तुओं और रिश्तों के प्रति मोह और लगाव ज्यादा नहीं रखता है। वह अपने सांसारिक फ़र्ज़ निभाते हुए भी इन चीज़ों से विरक्त रहता है। जैसे कोई सन्यासी और वैरागी कोई एकांत स्थान ढूँढ़ते हैं ऐसे ही केतु से प्रभावित व्यक्ति को एकांत स्थान में रहना बहुत पसंद होता है। केतु से प्रभावित व्यक्