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क्रूर ग्रह और सौम्य ग्रह- karur grah and somya grah

क्रूर ग्रह और सौम्य ग्रह
karur grah and somy grah

सौम्य ग्रह और क्रूर ग्रह, somya grah aur karur grah, somya grah type, karur grah type, somya grah aur karur grah

ज्योतिष शास्त्र में कुंडली अध्यन में व्यक्ति को क्रूर ग्रहों और सौम्य ग्रहों की जानकारी बहुत जरुरी है| इन क्रूर और सौम्य ग्रहों का विचार कैसे और कहां पर करना चाहिए, यह जानकारी होना भी आवश्यक है| पहले हम आपको क्रूर ग्रहों और सौम्य ग्रहों का नाम बताते हैं और फिर इसका विचार कैसे करना है उसकी जानकारी भी बताते है|

क्रूर ग्रह - Karur Grah

शनि
राहु 
मंगल 
सूर्य 

सौम्य ग्रह - Somy Grah

बृहस्पति 
शुक्र 
केतु  
चंद्र 
बुध 


नोट:-* चंद्र ग्रह यदि पक्ष बलि होगा तभी सौम्य ग्रह के अच्छे फल देगा|
* बुध ग्रह किसी भाव में अकेला बैठा हो या किसी सौम्य ग्रह के साथ बैठा हो, तभी सौम्य कहलाएगा| किसी क्रूर और पापी ग्रह की दृष्टि भी बुध ग्रह में आपने गुण भर देती है|
*इसमें से शनि, राहु और केतु पापी ग्रह की श्रेणी में भी आते हैं|

क्रूर और सौम्य ग्रहों का कुंडली में विचार:- कुंडली के विश्लेषण में एक तो योग कारक और मारक ग्रह होते हैं| योग कारक ग्रह कुंडली के लिए शुभ ग्रह होते हैं और यह योग कारण ग्रह जिस भाव में बैठते हैं उसकी वृद्धि ही करते हैं| दूसरे ग्रह मारक ग्रह होते हैं, यह ग्रह व्यक्ति के लिए अशुभ ग्रह माने जाते हैं अर्थात यह जिस भाव में बैठ जाएं उस भाव की क्षति ही करते हैं|
मगर आपको यह तो पता होगा कि प्रत्येक ग्रह का अपना नैसर्गिक स्वभाव और गुण होते हैं|उसी गुणों और स्वभाव के आधार पर ग्रहों को क्रूर ग्रह और सौम्य ग्रह की दो श्रेणिओं में बाँटा गया है| जैसे मान लो कुंडली में नैसर्गिक सौम्य ग्रह शुक्र मारक होकर भी बैठा हो, मगर उसका जो स्वभाव है वह उसको नहीं छोड़ेगा| वह आपने स्वभाव का प्रभाव व्यक्ति पर जरूर डालता है| उदाहरण के तौर पर मान लो आप किसी स्कूल में पढ़ते हो और वहां पर एक शिक्षक बहुत उग्र स्वभाव वाला है, मगर वह अपना काम ईमानदारी से करता है और वहीं उसी स्कूलों में एक शिक्षक बहुत शांत स्वभाव वाला है, मगर वह बहुत शांत स्वभाव वाला है और कोई बच्चा पढ़के आए या ना आए उसको कोई लेना देना नहीं है, मगर जो उग्र स्वभाव वाला शिक्षक है वह आपका भला सोच कर ही आपको ईमानदारी से पढ़ाता है, चाहे वह आपको शिक्षित करने के लिए आपको गुस्सा करता है| 
ऐसे ही कुंडली में मंगल, शनि या सूर्य जैसे ग्रह चाहे कुंडली में शुभ होकर भी बैठे हों, मगर  यह अपना नैसर्गिक स्वभाव नहीं छोड़ते हैं| मान लो यदि कुंडली में शनि योग कारक होकर दशम भाव अर्थात कार्य के भाव में बैठा है तो वह अधिक परिश्रम के बाद ही अच्छे फल देगा| शनि आपने स्वभाव और गुणों के कारण व्यक्ति से परिश्रम कराके ही उसको अच्छे फल देगा| वहीँ यदि कुंडली में कोई सौम्य ग्रह जैसे शुक्र योग कारक होकर कार्य भाव में बैठा है तो व्यक्ति को बहुत कम परिश्रम करने पर भी फलों की प्राप्ति होती है| यदि शुक्र मारक होकर भी बैठा हो तभी उसका स्वभाव और गुण सौम्य ही रहेंगे|
इसकी एक और उदाहरण लेते हैं| जैसे मान लो आपकी कुंडली में चंद्र ग्रह क्रूर ग्रह की राशि सिंह में बैठा है और साथ में क्रूर ग्रह मंगल युति करके बैठा है| जैसे आपको पता है कि चंद्र ग्रह हमारे मन का कारक ग्रह होता है और इसी लिए चंद्र राशि को इतना महत्व दिया जाता है| अब यहाँ पर एक तो चंद्र ग्रह  सूर्य की राशि सिंह में  बैठा है और साथ में मंगल क्रूर ग्रह मंगल की युति है| तो यहाँ पर दोनों क्रूर ग्रह सूर्य और मंगल के नैसर्गिक गुण जैसे उग्रता, गुस्सा जैसे गुणों का प्रभाव व्यक्ति के मन पर भी आएगा, चाहे कुंडली में मंगल और सूर्य योग कारक ही होकर क्यों ना बैठे हों| 
अब सौम्य ग्रह और क्रूर ग्रहों की एक और विशेषता यह है कि यदि जन्म कुंडली में किसी भाव या किसी ग्रह के ऊपर सौम्य ग्रहों की दृष्टि को शुभ माना गया है और वहीँ क्रूर ग्रहों की दृष्टि को अशुभ माना गया है| हम यहाँ पर शुभ या अशुभ ना कहकर यह कहें के सौम्य ग्रह अपनी दृष्टि से कुंडली के भाव और ग्रह को पुष्टि (बल) प्रदान करते हैं और वहीँ क्रूर ग्रह किसी किसी भाव और ग्रह पर अपनी दृष्टि से उसका बल कम करते हैं| इसका और प्रभाव यह होता है कि सौम्य ग्रहों की किसी भाव और ग्रह पर दृष्टि पड़ने से उस भाव और ग्रह से संबंधित फल मिलने में आसानी हो जाति है और वहीँ क्रूर ग्रहों की दृष्टि पड़ने से उस भाव या ग्रह के फल परिश्रम करने से मिलते हैं| 

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