कुंडली में सरस्वती योग Saraswati Yog in kundali in hindi
कुंडली में सरस्वती योग (Saraswati Yoga in Kundali)- कुंडली में गुरु, बुध और शुक्र से सरस्वती योग का निर्माण होता है। यह तीनों ग्रह ज्ञान और बुद्धि के कारक ग्रह माने जाते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में यह सरस्वती योग बनता है तो वह व्यक्ति अपने कार्यक्षेत्र में बहुत कुशल होगा और उसकी बहुत तीक्षण होगी। यह योग व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता को बहुत बड़ा देता है। जिसकी कुंडली में सरस्वती योग प्रबल बनता है वह व्यक्ति अपनी बुद्धि और अपनी कुशलता से दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनता है। कुंडली में सरस्वती योग जितना प्रबल बनेगा इसका उतना फल अधिक देखने को मिलेगा। हम आपको आगे सरस्वती योग बनाने वाले सभी नियमों के बारे में बताते हैं और यह योग कुंडली में भंग कैसे हो जाता है उसकी जानकारी भी देते हैं।
सरस्वती योग कैसे बनता है - How is Saraswati Yog formed?
किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में जब गुरु, बुध और शुक्र ग्रह लग्न से 1, 2, 4, 5, 7, 9 या 10 वें भावों में अलग-अलग या एक साथ बैठे हों और साथ में कुंडली में गुरु ग्रह उच्च राशि अर्थात कर्क या स्वं राशि अर्थात धनु और मीन या अपनी मित्र राशि अर्थात मेष, वृश्चिक या सिंह राशि में हो तब कुंडली में सरस्वती योग का निर्माण होता है। यहाँ पर आपको बता दें कि कुंडली में बुध और शुक्र भी साथ में जितना अधिक बलि होंगे उतना यह योग ज्यादा फलदाई होगा। यदि कुंडली में सरस्वती योग बनाने वाले इन तीनों ग्रहों में से कोई ग्रह सूर्य के साथ अस्त हो जाता है तो इस योग का प्रभाव उतना कम हो जाता है।
जैसे आप ऊपर रविंद्र नाथ टैगोर जी की कुंडली देख रहे हो। इसमें बुध और सूर्य ग्रह कुंडली के दूसरे भाव में बैठे हैं और गुरु यहाँ अपनी उच्च राशि अर्थात कर्क में पंचम भाव में बैठा हुआ है। इस तरह से इस कुंडली में सरस्वती योग का निर्माण होता है। यहाँ पर आप देखोगे कि बुध और शुक्र सूर्य के साथ बैठे हैं मगर इन दोनों ग्रहों की सूर्य से अंशात्मक दूरी ज्यादा होने से यह दोनों ग्रह अस्त नहीं होते हैं।
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नोट- नवग्रहों के बीज मंत्र की विधि|
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