कुंडली में केमद्रुम योग का प्रभाव Kemdrum yog effect and remedies in hindi
कुंडली में केमद्रुम योग का प्रभाव - कुंडली में कई तरह के अच्छे और बुरे योग बनते हैं। उनमें से एक केमद्रुम योग है जो कि एक बहुत बुरा योग है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में यह योग बनता है तो उस व्यक्ति का मन सदैव संसार से उखड़ा रहता है अर्थात उसका मन किसी भी कार्य में नहीं लगता है। उसको ज़िंदगी में अकेला महसूस होता है और ऐसे व्यक्तिओं को किसी भी क्षेत्र में महारथ हासिल करने में बहुत मुश्किल होती है। केमद्रुम योग बनने से व्यक्ति को ज़िंदगी में आगे बढ़ने में बहुत मुश्किल होती है। जिन कुंडलियों में यह योग बनता दिखाई देता है, यदि उन कुंडलिओं में सभी नियम लगाकर देखे जाए तो ज्यादातर कुंडलिओं में यह केमद्रुम योग भंग हो जाता है। हम आपको आगे सभी नियम बताकर समझाते हैं कि कुंडली में केमद्रुम योग बनता कैसे हैं और यह योग भंग कैसे होता हैं।
केमद्रुम योग क्या है - केमद्रुम योग को हमेशा चंद्र कुंडली से देखना चाहिए। यदि चंद्र कुंडली में लग्न भाव में चंद्र ग्रह अकेला बैठा हो और उससे दूसरे भाव अर्थात अगले भाव में कोई ग्रह न बैठा हो और चंद्र लग्न से बाहरवें अर्थात पिछले भाव में भी कोई ग्रह न हो तब केमद्रुम योग बनता है। मगर यदि चंद्र के साथ या उससे अगले या पिछले भाव में सूर्य, राहु या केतु हो तब भी केमद्रुम योग बन जाता है।
आपको पता ही होगा कि ज्योतिष शास्त्र में चंद्र कुंडली का इतना महत्व इसलिए है क्यूंकि चंद्र हमारे मन का कारक होता है और चंद्र पर जो भी ग्रह या राशि अपना प्रभाव डालते है उसका सीधा प्रभाव हमारे मन पर पड़ता है। चंद्र यदि किसी क्रूर राशि जैसे मंगल में विराजित हो या चंद्र पर मंगल की दृष्टि हो तो हम कहते हैं कि यह व्यक्ति गुस्से वाला होगा, बहुत निडर और मेहनत से कार्य करने वाला होगा, अच्छा नेतृत्व करने वाला होगा। ऐसे ही यदि चंद्र किसी सौम्य राशि जैसे वृषभ में होगा या उसके ऊपर शुक्र की दृष्टि होगी तो हम कह देते हैं कि व्यक्ति शांत स्वाभाव और रोमांटिक स्वाभाव का होगा। इसका अर्थ यही हुआ कि चंद्र बहुत चंचल और बाल अवस्था वाला ग्रह है और यह हमारे मन और स्वाभाव का कारक ग्रह है। चंद्र के ऊपर जैसे कारकत्व वाले ग्रह की दृष्टि पड़ती है या चंद्र के साथ युति होती है या चंद्र जिस ग्रह की राशि में जाता है। व्यक्ति के स्वाभाव और मन पर भी उस ग्रह के कारकत्वों का प्रभाव आता है। यदि चंद्र पर किसी ग्रह का प्रभाव ही ना हो तब उसे केमद्रुम योग कहा गया है। हम आपको नीचे 2 चित्रों की उदाहरण से समझते हैं कि केमद्रुम योग कैसे बनता है और यह कब भंग हो जाता है।
केमद्रुम योग भंग - Kemdrum yog Bhang
आप ऊपर चंद्र कुंडली के 2 चित्र देख रहे हो। इसमें हम आपको समझाएंगे कि कैसे केमद्रुम योग बनता है और वह कौन-कौन सी स्थितिओं में भंग हो जाता है।
जैसा आप ऊपर चित्र नंबर. 1 में देख रहे हो कि यहाँ चंद्र देव अकेले बैठे हैं और उनके दृत्य भाव अर्थात अगले भाव में कोई ग्रह नहीं है और उनके बाहरवें भाव अर्थात पिछले भाव में भी केतु के अतिरिक्त कोई दूसरा ग्रह नहीं है। अब हमें जैसे पता है कि चंद्र कुंडली के लग्न भाव में चंद्र के साथ राहु, केतु और सूर्य के अतिरिक्त कोई ग्रह ना हो और उससे अगले भाव और पिछले भाव में भी राहु, केतु और सूर्य के अतितिक्त कोई ग्रह ना हो तो केमद्रुम योग बनता है। इस नियम के मुताबिक तो चित्र नंबर. 1 में केमद्रुम योग बन रहा है। मगर इसके अतिरिक्त भी दो नियम हैं यदि वह पूरी तरह से लागू नहीं होते हैं तो केमद्रुम योग भंग हो जाता है।
ज्यादातर लोग तो कुंडली में ऐसी स्थिति से ही केमद्रुम योग बनता देखकर उसे मान लेते हैं। मगर आपको बता दें कि चित्र नंबर. 1 में केमद्रुम योग 2 कारणों से भंग हो जाता है।
पहला नियम यह है कि यदि ऊपर बताई स्थिति के अनुसार केमद्रुम योग बन रहा हो और साथ में चंद्र के ऊपर राहु, केतु या सूर्य को छोड़कर अन्य ग्रह की दृष्टि आ जाये तो केमद्रुम योग भंग हो जाता है। क्यूंकि दूसरे ग्रह की दृष्टि चंद्र के ऊपर अपना प्रभाव डालकर केमद्रुम योग को भंग कर देती है। ऊपर चित्र नंबर. 1 में शनि की तीसरी दृष्टि चंद्र पर पड़ रही है जिससे यह योग भंग हो जाता है।
दूसरा नियम यह है कि यदि चंद्र कुंडली से केंद्र भाव (4, 7, 10 भाव) में कोई ग्रह आ जाये तब भी केमद्रुम योग भंग हो जाता है। जैसे आप ऊपर चित्र नंबर. 1 में देख रहे हो कि बुध केंद्र भाव (चतुर्थ भाव) में बैठ कर इस केमद्रुम योग को भंग कर रहा है।
अब आप ऊपर चित्र नंबर. 2 को देखिए। इसमें चंद्र लग्न भाव में अकेला बैठा है और उससे दूसरे भाव अर्थात अगले भाव में सूर्य के अतिरिक्त कोई ग्रह नहीं है और चंद्र से बाहरवें भाव अर्थात पिछले भाव में भी कोई ग्रह नहीं है। अब यहाँ पर आप देखोगे कि चंद्र पर राहु, केतु और सूर्य को छोड़कर किसी अन्य ग्रह की दृष्टि भी नहीं है। इस तरह से केमद्रुम योग बनने का पहला नियम तो लागू हो गया। अब दूसरे नियम के अनुसार चित्र नंबर. 2 में चंद्र से केंद्र भावों (4, 7, 10 भावों) में भी कोई ग्रह नहीं है। तो हम यहाँ पर कह सकते हैं कि इस कुंडली में केमद्रुम योग बन रहा है। आशा करता हूं कि आपको पूरी तरह से समझ आ चुका होगा कि कुंडली में केमद्रुम योग कैसे बनता है।
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नोट- नवग्रहों के बीज मंत्र की विधि|
*सूर्य बीज मंत्र *चंद्र बीज मंत्र *मंगल बीज मंत्र
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