कुंडली में गजकेसरी योग का निर्माणGajakesari Yoga in kundali in hindi
गजकेसरी योग क्या है (What is Gajkesari Yog)- कुंडली में गुरु और चंद्र ग्रह से गजकेसरी योग बनता है। जब किसी व्यक्ति की कुंडली में गुरु और चंद्र ग्रह किसी भाव में एक साथ बैठे हो या जन्म कुंडली में गुरु ग्रह से चंद्र चौथे, सातवें या दसवें भाव में हो तब गजकेसरी योग का निर्माण होता है। मगर यह योग बनने के लिए काफी नियम लागू होते हैं। यदि जन्म कुंडली में यह नियम और शर्तें पूरी होती हैं तभी प्रबल योग समझा जाता है अन्यथा सिर्फ कुंडली में गुरु और चंद्र ग्रह की युति या गुरु से चौथे, सातवें या दसवें घर में चंद्र के बैठने से यह योग नहीं बनता है। हम आपको आगे गजकेसरी योग बनाने वाले नियम की पूर्ण जानकारी देते हैं।
गजकेसरी योग का अर्थ होता है जैसे हाथिओं के झुंड में अकेला शेर चलता है। यह योग चंद्र पर गुरु के प्रभाव से बनता है। जैसे आपको पता है चंद्र हमारे मन का कारक है और जब चंद्र पर गुरु का ऐसा प्रभाव या युति बनती है तो गुरु के कारकत्व व्यक्ति के मन को प्रभावित करते हैं। कुंडली में ऐसा योग बनने वाले व्यक्ति महान और प्रतिष्ठित व्यक्तिओं के बीच भी अपनी अलग पहचान बनाकर चलता है। यह योग व्यक्ति को बहुत ज्ञानवान और दूरदर्शी बनता है।
गजकेसरी योग बनने के नियम और शर्तें
हम आपको नीचे 2 चित्र दे रहे हैं जिसके द्वारा आपको गजकेसरी योग बनाने वाले नियम और शर्तें के बारे में उदाहरण देकर समझाया जायेगा।
जन्म कुंडली में गुरु और चंद्र ग्रह का बली होना- यदि आपकी कुंडली में गजकेसरी योग बनता दिखाई दे रहा है तो आप सबसे पहले चंद्र की स्थिति देखिये कि क्या चंद्र कुंडली में पक्षबली है? ऐसे ही कुंडली में गुरु ग्रह की स्थिति भी देखिये कि कुंडली में गुरु षटबल में बली है यदि कुंडली में चंद्र पक्षबली है और गुरु में भी षटबल है, तभी इस योग का पूर्ण फल आपको मिलेगा। आपकी कुंडली में चंद्र और गुरु जितना बली होंगे उतना यह योग आपको अधिक फल देगा और जितना बल कम होगा उतना कम फल मिलेगा। कुंडली में गुरु और चंद्र यदि नीच राशि और नीच नवांश में जाते हैं तो भी इसका फल कम मिलेगा। कुंडली में किसी ग्रह का नीच राशि में जाना ग्रह का बल कम करता है।
जैसे आप ऊपर चित्र नंबर. 1 में देख रहे हो कि इस कुंडली में गुरु से चंद्र सातवें भाव में है, मगर साथ में यह भी देखिये कि यहाँ पर चंद्र ग्रह कि अगले भाव में सूर्य बैठा है और यहाँ चंद्र अपनी नीच राशि वृश्चिक में भी बैठा है। ऐसे चंद्र यहाँ पर बल हीन हो जाता है और यहाँ पर गजकेसरी योग का निर्माण नहीं होता है। ऐसे ही आप चित्र नंबर. 2 में देखिये कि यहाँ पर चंद्र की सूर्य से दूरी होने से यह पक्ष बली है और गुरु को भी दिग्बल प्राप्त हो रहा है। इस तरह से यहाँ गजकेसरी योग आपको पूर्ण फल देगा।
कुंडली में चंद्र और गुरु ग्रह का मारक होना - यदि आपकी कुंडली में चंद्र और गुरु मारक ग्रह हैं तब भी यह योग भंग हो जाता है। जैसे आप ऊपर चित्र नंबर. 1 में देख रहे हो कि यह जन्म कुंडली तुला लग्न की कुंडली है और इस कुंडली में गुरु मारक ग्रह होता है और चंद्र सम है। इस तरह से मारक ग्रह होने से यह योग भंग हो जाता है। ऐसे ही आप चित्र नंबर. 2 में देखिये कि यह जन्म कुंडली मेष लग्न की है और यहाँ पर गुरु योग कारक ग्रह है और चंद्र भी चतुर्थ भाव अर्थात सुख भाव का स्वामी है। यहाँ पर गजकेसरी योग अपना प्रबल फल देगा। इसलिए गजकेसरी योग का विचार करने से पहले कुंडली में योग कारक और मारक ग्रह का विचार जरूर कर लेना चाहिए।
चलित भाव कुंडली से विचार - कुंडली में किसी भी भाव का विचार, ग्रहों की स्थिति और ग्रहों की युति का विचार करने के लिए आपको चलित भाव कुंडली का प्रयोग करना चाहिए अन्यथा आपका पूर्ण फलादेश गलत हो सकता है। आप इसकी जानकारी हमारे पेज चलित भाव कुंडली पर क्लिक करके प्राप्त कर सकते हो। कई बार जन्म कुंडली में योग बनते दिख रहे होते हैं मगर चलित भाव कुंडली में भंग हो जाते है।
ग्रहों की अंशात्मक (Degree Wise) दूरी - जब भी कोई दो ग्रह किसी एक भाव में बैठ कर कोई अच्छा या बुरा योग बना रहें हों तो उनकी अंशात्मक (Degrere wise) दूरी का विचार जरूर करना चाहिए। यदि कोई दो ग्रहों की अंशात्मक (Degree wise) दूरी 5 अंश (Degree) से कम है तब यह आपने पूर्ण फल देते हैं और यदि दो ग्रहों की दूरी 5 से 10 अंश (Degree) तक है तब यह अपना मध्यम फल देते हैं और यदि दो ग्रहों की अंशात्मक (Degree wise) दूरी 10 से 15 अंश (Degree) की है तो यह अपना फल बहुत कम देते हैं और यदि दो ग्रहों की आपसी अंशात्मक (Degree wise) दूरी 15 अंश से अधिक है तो यह अपना फल नामात्र देते हैं। इसलिए कुंडली में किसी भी योग निर्माण और ग्रहों की युति का विचार करने से पहले उनकी अंशात्मक दूरी जरूर देख लेनी चाहिए।
क्रूर, पापी और मारक ग्रहों की दृष्टि - यदि कुंडली में गजकेसरी योग बन रहा हो और गुरु या चंद्र पर किसी क्रूर, पापी या मारक ग्रह की दृस्टि पड़ रही हो तो तब भी फलों में कमी आती है।
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नोट- नवग्रहों के बीज मंत्र की विधि|
*सूर्य बीज मंत्र *चंद्र बीज मंत्र *मंगल बीज मंत्र
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