जन्म कुंडली का महत्व Janam Kundali or Lagna Kundali
जन्म कुंडली का महत्व (Importance of Janam Kundali in Astrology):- जन्म कुंडली को हम लग्न कुंडली भी कहते हैं| वैसे तो ज्योतिष शास्त्र में और भी कई प्रकार की वर्ग कुंडलियां, चंद्र कुंडली और चलित कुंडली होती हैं, मगर इसमें से यदि देखा जाए तो जन्म कुंडली सबसे महत्व रखती है| किसी भी व्यक्ति के जन्म के सम्य और जन्म स्थान से आकाशमण्डल में जो भी ग्रहों की स्थिति होती है, उसको जन्म कुंडली में अंकित कर दिया जाता है| इसी जन्म कुंडली से निर्धारित होता है कि आपके लिए कौन से ग्रह मारक अर्थात शत्रु स्वभाव के और कौन से ग्रह योग कारक अर्थात मित्र स्वभाव के साबित होंगे| हम आपको आगे एक जन्म कुंडली की उदाहरण देकर समझाते हैं कि जन्म कुंडली को कैसे देखते हैं और इसका ज्योतिष शास्त्र में क्या महत्व है|
जैसे आप ऊपर चित्र नंबर. 1 में जन्म कुंडली देख रहे हो, सबसे पहले हम आपको थोड़ा समझा दें कि यह जो आपको जन्म कुंडली या लग्न कुंडली का चित्र दिखाई दे रहा है यह हमारा पूरा आकाशमण्डल होता है और इसको 12 भागों में बांटा जाता है और उन 12 भागों को 12 राशिओं का नाम दिया जाता है। जैसे चित्र नंबर 1 में यहाँ 3 नंबर लिखा है इसको कुंडली का प्रथम भाव या लग्न भाव कहा जाता है और यहाँ पर 4 नंबर लिखा है वह कुंडली का दृत्य भाव होता है। ऐसे ही क्रमश कुंडली के 1 से 12 भाव होते हैं और प्रत्येक भाव में कोई न कोई नंबर होता है, यह नंबर राशि के नंबर होते हैं। जैसे ऊपर चित्र नंबर 1 में प्रथम भाव में 3 नंबर लिखा है और 3 नंबर मिथुन राशि को कहते हैं। यदि आपको राशि और उसके नंबरों का ज्ञात नहीं है तो आप हमारे पेज कुंडली में 12 राशियां पर क्लिक करके जानकारी हासिल कर सकते हो।
अब इसके आगे हम कुंडली के भावों में ग्रहों की बात करेंगे। जैसे आप चित्र नंबर. 1 में देख रहे हो इस जन्म कुंडली के प्रथम भाव में 3 नंबर राशि अर्थात मिथुन राशि के साथ सूर्य और चंद्र गृह बैठे हैं। ऐसे ही इस कुंडली के तृत्य (3) भाव में 5 नंबर राशि (सिंह राशि) में राहु बैठे हुए हैं। आगे चर्तुथ (4) भाव में 6 नंबर राशि (कन्या राशि) के साथ गुरु ग्रह बैठे हुए हैं। अब आप यह बात भी समझ गए होंगे कि कैसे सभी ग्रह किसी न किसी भाव में किसी राशि के साथ बैठे होते हैं। यदि कोई ग्रह कुंडली के किसी अच्छे भाव जैसे त्रिकोण या केंद्र में अपनी मित्र राशि या उच्च राशि में बैठा हो तो उसका बल भी बढ़ता हैं और वह अच्छे फल देने में समक्ष होता है और यदि कोई ग्रह कुंडली के त्रिक भाव (6, 8, 12 भाव) में अपनी शत्रु राशि या नीच राशि में बैठा हो तो उसका बल घटता है और वह बुरे परिणाम देता है| मगर यहाँ पर कई बार नीच भंग राज योग या विपरीत राज योग से कई बार बुरी अवस्था में भी ग्रह अच्छा फल देते हैं और साथ में ग्रहों के अच्छे और बुरे फलों का विचार करने के लिए उनकी योगकारिता और मारकत्व का भी विचार करना चाहिए|
अब आपको यह ज्ञात हो चुका है कि कुंडली हमारे आकाशमण्डल का चित्र होता है और उसको 12 भावों में बांटा जाता है और प्रत्येक भाव में एक राशि का नंबर होता है। कुंडली में इन राशियों से हमें पता चलता है कि किसी कुंडली में कौन से ग्रह योग कारक अर्थात अच्छा फल देने वाले होंगे और कौन से ग्रह मारक अर्थात बुरा फल देने वाले होंगे। यदि आप कुंडली में योग कारक और मारक ग्रहों की पहचान करना सीखना चाहते हो तो हमारे पेज योग कारक और मारक ग्रह पर क्लिक करके जानकारी हासिल कर सकते हो।
अब आखिर में हम जन्म कुंडली (लग्न कुंडली) के महत्वपूर्ण बिंदुओं पर बात करते हैं। जैसे आपको पता है कि जन्म कुंडली या लग्न कुंडली पूरा आकाश मंडल होती है और उसको 12 राशिओं में बाँट दिया जाता है। आपकी जन्म कुंडली में ग्रहों की जो स्थिति होती है असल में आपके जन्म स्थान और जन्म सम्य पर आकाशमण्डल में भी ग्रह उसी स्थान पर होते हैं और जन्म कुंडली आकाशमण्डल होती है और सभी ग्रहों की स्थिति जन्म सम्य और स्थान के मुताबिक अंकित की होती है|
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नोट- नवग्रहों के बीज मंत्र की विधि|
*सूर्य बीज मंत्र *चंद्र बीज मंत्र *मंगल बीज मंत्र
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