हिन्दू धर्म के 16 संस्कारों की सम्पूर्ण जानकारी
16 Sanskaar in Hindi
हिन्दू धर्म में 16 संस्कारों के कर्मकांडों का बहुत विशेष महत्व है। यह 16 संस्कार व्यक्ति के गर्भ में भ्रूण से शुरू होकर उसकी मृत्यु तक चलते हैं। हमारे हिन्दू धर्म में यह तो सबको पता है कि हिन्दू धर्म में 16 संस्कार होते हैं मगर यह 16 संस्कारों के नाम क्या होते हैं और यह कब और किस विधि से किए जाते हैं? इसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं। हम आपको आगे सभी 16 संस्कारों के नाम और उसको कब और कैसे किया जाता है उसकी जानकारी देते हैं।
16 संस्कारों के नाम (Name of 16 Sanskaar):- हिन्दू धर्म के 16 संस्कारों को हम 4 श्रेणिओं में बाँटेंगे।
जन्म के पूर्व के संस्कार
1. गर्भाधान संस्कार
2. पुंसवन संस्कार
3. सिमंतोनन्यन संस्कार
जन्म से शिक्षा के पूर्व के संस्कार
4. जातकर्मन संस्कार
5. नामकरण संस्कार
6. निष्कर्मण संस्कार
7. अन्नप्राशन संस्कार
8. चूड़ाकरण संस्कार
9. कर्णभेद संस्कार
शिक्षा के संस्कार
10. विद्यारंभ संस्कार
11. उपनयन संस्कार
12. वेदारंभ संस्कार
13. केशान्त संस्कार
14. समवर्त संस्कार
अन्य संस्कार
15. विवाह संस्कार
16. अंत्येषिट संस्कार
1. गर्भाधान संस्कार (Garbhadhaan Sanskaar):- सबसे पहले गर्भाधान संस्कार में विवाहित युगल द्वारा गर्भ में बीज का प्रत्यारोपण किया जाता है। हिन्दू धर्म में पूर्वजों का ऋण उतारने के लिए संतान पैदा करना आवश्यक था और इसमें असफलता को धार्मिक ग्रंथों में पाप बताया गया है। इस पवित्र कार्य के लिए स्वस्थ्य युगल उचित समय का चयन कर इस संस्कार में गर्भ में बीजारोपण करते हैं।
2. पुंसवन संस्कार(Punsavan Sanskaar):- गर्भाधान के पूर्ण होने पर यह अगला संस्कार होता है। इस संस्कार में गर्भाधान के तीसरे या चौथे महीने के बाद जब चंदर्मा पुरुष नक्षत्र समूह विशेषकर तिश्य नक्षत्र में होता है तब यह संस्कार किया जाता है। उस दिन दिन में माता को उपवास करना पड़ता था और रात में बरगद के वृक्ष की कोचलों को पीसकर तथा उसका रस निकालकर धार्मिक मन्त्रों के साथ माता की दाहिनी नासिका-रंध्र में डाला जाता था। चंद्र के इस पुरुष नक्षत्र में यह संस्कार पुत्र प्राप्ति के उदेश से किया जाता है।
3. सिमंतोनन्यन संस्कार (Simantonanyan Sanskaar):- इस तीसरे संस्कार में गर्भवती माता के केश छोटे कर दिए जाते हैं। यह मान्यता है कि गर्भवती महिलाओं को अप्शक्तिओं से बचाने के लिए यह संस्कार विधि-विधान से किया जाना जरुरी है। इस संस्कार के पीछे का उद्देश्य माता के लिए समृद्धि और अजन्में शिशु के लिए दीर्घायु प्राप्त करना है। यह संस्कार गर्भधान से पांचवें महीने में किया जाता है।
4. जातकर्मन संस्कार (Jaatkarman Sanskaar):- जातककर्म संस्कार जब शिशु माता के गर्भ से बहार आता है तब किया जाता है। यह संस्कार शिशु की नाभिनाल काटने से पहले किया जाता है। इस संस्कार में शिशु को स्वर्ण-सूत से मधु चटाते समय मन्त्रों का उच्चारण किया जाता है। इस संस्कार शिशु की दीर्घायु और उसकी रक्षा के लिए किया जाता है।
5. नामकरण संस्कार (Naamkaran Sanskaar):- नामकरण संस्कार में धार्मिक विचारों और शिशु के नक्षत्रों के मुताबिक उसके नाम का चयन किया जाता है। गृहसूत्रों में विभिन नामों का वर्णन है। इस सूत्र में विभिन अक्षरों का वर्णन है और उसके अनुसार शिशु का नाम रखा जाता है।
6. निष्कर्मण संस्कार (Nishkarman Sanskaar):- शिशु को पहली बार घर से बहार निकलने को निष्कर्मण संस्कार कहा जाता है। आरंभ में शिशु को पलने के लिए घर की चारदीवारी में रखा जाता है और करीब 40 दिन के बाद उसको बाहर निकाला जाता है।
7. अन्नप्राशन संस्कार (Annprashan Sanskaar):- अन्नप्राशन संस्कार में बच्चे को पहली बार ठोस भोजन कराया जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार शिशु को 6 महीनो तक माता का दूध और उसके बाद शिशु की वृद्धि के अनुसार उसको ठोस भोजन खिलाना शुरू कराया जाता है।
8. चूड़ाकरण संस्कार (Churakaran Sanskaar):- चूड़ाकरण संस्कार में बच्चे का मुंडन किया जाता है। यह संस्कार बच्चे की दीर्घायु तथा सौंदर्य के लिए किया जाता है। कुछ लोगों का विचार है कि यह संस्कार बच्चे के केशों को देवता को अर्पण करने से है और इसमें अर्पण का भाव है। यह संस्कार पहले वर्ष के बाद और तीसरे वर्ष के अंत तक किया जाना जरुरी होता है।
9. कर्णभेद संस्कार (Karanbhed Sanskaar):- शिशु के प्रथम वर्ष के बाद और चौथे वर्ष से पहले उसके कानों को छिदवाना कर्णभेद संस्कार होता है। पहले तो यह संस्कार शिशु को प्रथम आभूषण ग्रहण के उद्देश्य से किया जाता था मगर बाद में इसे शिशु के अच्छे स्वास्थ्य के उद्देश्य से किया जाने लगा। क्षत्रिओं के लिए सोने की और ब्राह्मणो और वैश्यों की चांदी की सुई से कानों में छेद किए जाते थे।
10. विद्यारंभ संस्कार (Vidhyarambh Sanskaar):- विद्यारंभ संस्कार में शिशु का शिक्षा में पहला कदम होता था। इस संस्कार में शिशु को वर्णमाला का ज्ञात कराया जाता है। यह संस्कार शिशु के 5 वर्ष में किया जाता है।
11. उपनयन संस्कार (Upnayan Sanskaar):- उपनयन संस्कार में शिशु को शिक्षा ग्रहण करने के लिए गुरु के पास गुरुकुल में भेजा जाता है। सांस्कृतिक तोर पर यह सबसे महत्वपूर्ण संस्कार बन जाता है। यहाँ पर शिशु गुरु से विद्या की दीक्षा लेकर अपनी प्रथम शिक्षा की शुरुआत करता है।
12. वेदारंभ संस्कार (Vedarambh Sanskaar):- वेदारंभ संस्कार में वैदिक ग्रंथों का अध्यन आरंभ होता है। यहाँ पर बच्चा अपनी प्राथमिक शिक्षा को पूरा करता हुआ पहले वेदों का पूर्ण अध्यन करने के बाद वेदों में से कोई एक विषय का चुनाव करता था और उसके ऊपर अध्यन करता था।
13. केशान्त संस्कार (Keshant Sanskaar):- केशान्त संस्कार में छात्र की 16 साल की आयु में पहली बार हज़ामत बनवाने से सबंधित है। पौरुषी चेतना जागृत होने के कारण इस संस्कार में उसको फिर से ब्रह्मचर्य का समरण कराया जाता है। इस संस्कार के बाद छात्र अपने गुरु को दक्षिणा में एक गाए देता था।
14. समवर्त संस्कार (Samwart Sanskaar):- समवर्त संस्कार में छात्र अपनी शिक्षा समाप्त करके अपने घर लोटता था। इस संस्कार में छात्र अपनी शिक्षा को समाप्त करके गुरु की आज्ञा लेकर घर लोटता था। यहाँ पर छात्र को आखिर में एक स्नान भी कराया जाता था।
15. विवाह संस्कार (Vivah Sanskaar):- हिन्दू धर्म में विवाह संस्कार बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। विवाह संस्कार में लड़का और लड़की गृहस्थ जीवन और संतान की प्राप्ति के उद्देश्य से यह संस्कार को करते है। इस संस्कार में लड़का-लड़की की और भी कई तरह की जरूरते पूरी होती हैं। हिन्दू धर्म में 8 प्रकार के विवाहों का वर्णन है।
16. अंत्येषिट संस्कार (Antyeshit Sanskaar):- अंत्येषिट संस्कार मनुष्य का आखिरी संस्कार होता है। इस संस्कार में जब वह जीवन की यात्रा ख़तम करके प्राण त्याग देता था तब उसके घर वाले उसका यह अंतिम संस्कार करते थे। इस संस्कार में व्यक्ति को मन्त्रों के द्वारा अग्नि में भेंट कर दिया जाता था। जिससे वह पंच-तत्वों में वलीन हो जाता है।
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