कुंडली में विपरीत राज योग
Vipreet Raj yoga in Kundali
विपरीत राज योग को जानने से पहले आपको कुंडली में त्रिक भाव, कुंडली के 12 भाव, कुंडली की 12 राशि और उनके स्वामी, अंश(Degree), योग कारक गृह और मारक गृह, अस्त गृह आदि के बारे में जानकारी होनी चाहिए, तभी आप विपरीत राज योग को समझ पाओगे|यदि आप इन विषयों के बारे में नहीं जानते हो तो आप पहले हमारे पेज Free Astrology Classes in Hindi पर क्लिक करके सारी जानकारी प्राप्त कर ले|
विपरीत राज योग क्या है(What is Vipreet Raj Yoga):-कुंडली के त्रिक भावों(6, 8, 12 भावों) को कुंडली के बुरे भाव माना गया है|यदि कुंडली के त्रिक भाव अर्थात षष्ठ(6) भाव, अष्ट(8) भाव या द्वादश(12) भाव में कोई भी गृह आकर बैठ जाए तो वह बुरा परिणाम देते हैं| कुंडली के इन त्रिक भावों(6, 8, 12) में यदि कोई उच्च का गृह या योग कारक गृह भी बैठा हो तो वह भी बुरा फल ही देता है|
मगर यदि इन त्रिक भावों में बैठे गृह की विपरीत राज योग की स्थिति बनती है तो वह गृह बहुत अच्छे फल देने लगता है|किसी भी गृह का ज्यादातर फल उसकी महादशा या अंतर-दशा में देखने को मिलता है| हम आपको आगे उदाहरण देकर समझाएँगे कि विपरीत राज योग के लिए कौन-कौन से सिद्धांत(शर्ते) लागू होती हैं|
पहला सिद्धांत या शर्त:-
आपको यह ज्ञात हो गया कि कुंडली कि त्रिक भाव(6, 8, 12) में कोई भी गृह बैठ जाए तो वह बुरे फल देता है|
विपरीत राज योग बनने की पहली शर्त यह होती है कि जो गृह कुंडली के त्रिक भाव(6, 8, 12) भाव में बैठा है, उस गृह की कोई एक राशि भी त्रिक भाव अर्थात 6, 8 या 12 भाव में होनी चाहिए| जैसा आप चित्र नंबर 1 में देख रहे हो कि यहाँ पर शनि कुंडली के षष्ठ(6) भाव में बैठा है और यह कुंडली का त्रिक भाव है| यहाँ पर आप देख सकते हो कि शनि की एक राशि नंबर 10(मकर) त्रिक भाव के अष्टम(8) भाव में है| इस तरह से शनि गृह की विपरीत राज योग बनने की पहली शर्त पूरी हो जाती है|
यहाँ पर यदि शनि गृह कुंडली के षष्ठ6) भाव के अतिरिक्त अष्टम(8) भाव में राशि नंबर 10(मकर) अपनी स्वं राशि या द्वादश(12) भाव में राशि नंबर 2(वृष) के साथ बैठा होता तो भी पहली शर्त पूरी कर लेता है| भाव त्रिक भाव में कोई भी गृह बैठा हो उसकी कोई एक राशि भी कुंडली के त्रिक भावों में किसी एक भाव में आ रही हो तो पहली शर्त विपरीत राज योग बनने की पूरी हो जाती है|
दूसरा सिद्धांत या शर्त:-
विपरीत राज योग बनने की दूसरी शर्त यह होती है कि जो कुंडली की लग्न(प्रथम) भाव की राशि का स्वामी गृह किसी अच्छे भाव में बैठा होना चाहिए, अर्थात उसकी स्थिति अच्छी होनी चाहिए| वह कुंडली के त्रिक भाव(6, 8, 12) में किसी एक भाव में नहीं बैठा होना चाहिए और ना ही वह नीच अवस्था में होना चाहिए|
जैसे आप चित्र नंबर 2 में देख रहें हो कि यहाँ शनि गृह त्रिक भाव कि षष्ठ(6) भाव में बैठा है और उसकी एक राशि नंबर 10(makar) भी त्रिक भाव के अष्टम में होने से शनि की विपरीत राज योग बनने की पहली शर्त पूरी हो गई है और यहाँ दूसरी शर्त के मुताबिक इस कुंडली के प्रथम(लग्न) भाव की राशि नंबर 3 का स्वामी गृह बुध कुंडली के पंचम भाव में बैठा है और यहाँ पर लग्न(प्रथम) भाव का स्वामी गृह बुध शुभ स्थिति में है, तो यहाँ पर शनि गृह ने विपरीत राज योग बनाने की दूसरी शर्त भी पूरी कर ली है|
वहीं जैसा आप कुंडली नंबर 3 में देख रहें हो कि यहाँ पर शनि गृह अपनी पहली शर्त तो पूरी कर चुका है, मगर यहाँ इस कुंडली के प्रथम(लग्न) भाव का स्वामी गृह बुध कुंडली के त्रिक भाव(6, 8, 12) के द्वादश(12) भाव में बैठा हुआ है| इस तरह यहाँ बुध त्रिक भाव में बैठ जाने से यह गृह अशुभ अवस्था में आ गया है तो यहाँ पर शनि की विपरीत राज योग बनने की दूसरी शर्त पूरी नहीं होती है| इस अवस्था में अब यहाँ पर आगे के सिद्धांत को देखने की जरुरत नहीं होती है|
तीसरी सिद्धांत:-
कुंडली में विपरीत राज योग बनने की 2 शर्तो को आपने समझ लिया है| अब तीसरी शर्त यह है कि कुंडली के प्रथम(लग्न) भाव की राशि के स्वामी का अंश(Degree) 10 से 20 अंश(Degree) के बीच होनी चाहिए अर्थात कुंडली के लग्न भाव का स्वामी गृह बलवान होना चाहिए| वह 10 अंश(degree) से कम और 20 अंश (degree) से अधिक नहीं होना चाहिए| जैसा आप ऊपर चित्र नंबर 1 में देख रहे हो, यहाँ पर लग्न(प्रथम) भाव के स्वामी गृह बुध का अंश(degree) कम से कम 10 से 20 के बीच होनी चाहिए| यदि यहाँ पर 2-3 अंश(Degree) कम या अधिक हो तो आप उस गृह का रतन डाल कर उसकी शक्ति बढ़ा सकते हो|
चौथा सिद्धांत या शर्त:- कुंडली में विपरीत राज योग बनने की चौथी शर्त यह होती है कि कुंडली के प्रथम(लग्न) भाव की राशि का स्वामी गृह सूर्य के साथ अस्त नहीं होना चाहिए|जैसे आप कुंडली के चित्र नंबर 1 में देख रहें हो कि यदि यहाँ पर प्रथम भाव का स्वामी गृह बुध सूर्य के साथ अस्त होता है तो उसकी शक्ति कम हो जाएगी और ऐसी स्थिति में शनि की विपरीत राज योग की स्थिति नहीं बनेगी| यदि आप गृह के अस्त होने की जानकारी नहीं रखते हो तो आप हमारे पेज Kundali mein Ast Grah पर क्लिक करके जानकारी प्राप्त कर सकते हो| यहाँ पर भी यदि कोई गृह कम अस्त हुआ हो तो उस गृह का रतन डाल कर आप उसकी शक्ति बढ़ा सकते हो|
हमने आपको किसी गृह के विपरीत राज योग बनने के 4 सिद्धांत या शर्ते बता चुके हैं | यदि यह 4 सिद्धांत आपकी कुंडली में लागू होते हैं तो आपका गृह विपरीत राज योग की स्थिति में आ जाएगा और त्रिक भाव(6, 8, 12) में होते हुए भी आपको बहुत अच्छे फल देगा|
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कन्या लगन की कुंडली में सूर्य द्वादश भाव में विद्यमान है और लग्नेश बुध प्रथम भाव में, बुध की डिग्री ०३’३१ है, साथ में शनि १५ डिग्री, शुक्र २२ डिग्री, चंद्र १४ डिग्री,
ReplyDeleteबृहस्पति 18 डिग्री, प्रथम भाव में मौजूद हैं, विप्रीत राज योग है?
ग्रह बुध की कम डिग्री के लिए उपाय?
सर,
ReplyDeleteमैं एक विद्यार्थी हू।
मेरे सामने एक कुंडली हैं मेष लग्न की।
उसमें ६ भाव (कन्या के स्वामी बुध ८ वे भाव में विराजमान है और ८वे भाव (वृश्चिक के स्वामी मंगल जो लग्न के भी स्वामी हैं) वो ६ भाव में बैठे है।
तो ये विपरीत माना जाएगा या परिवर्तन योग माना जाएगा?
इसका फल क्या होगा?