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Lesson-14 ग्रहों का दिशाबल दिग्बल - Grahon ka Dishabal or Digbal

ग्रहों का दिशाबल (दिग्बल)और प्रभाव 
Grahon ka dishabal (Digbal) aur prabhav

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दिशाबल (दिग्बल) का अर्थ: दिशाबल को समझने से पहले आपको पता होना चाहिए कि ज्योतिष विज्ञान में जो कुंडली का चित्र अंकित किया जाता है, असल में वह हमारा पूरा आकाशमंडल होता है और उस आकाश मंडल को 12 भाव(हिस्सों) में बांटा जाता है| उन 12 भावों में 12 राशियां होती हैं और उन राशियों में सभी गृह 360° अंश(Degree) पर भ्रमण करते हैं|प्रत्येक राशि में सभी गृह 30° अंश (Degree) पर चलते हैं और फिर अगली राशि में प्रवेश करते हैं| हम आपको आगे विस्तार से उदाहरण देकर समझाते हैं कि किसी गृह को कब दिशाबल मिलता है और उसके क्या परिणाम होते हैं|
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जैसा आप ऊपर चित्र नंबर 1 में देख रहें हो कि कुंडली के प्रथम भाव(1), चर्तुथ भाव(4), सप्तम भाव(7) और दशम भाव(10) को कुंडली के केन्द्र भाव कहा जाता है और इन केन्द्र भावों को चार दिशों में बांटा गया है| कुंडली का प्रथम भाव पूर्व(East) दिशा की और होता है, चतुर्थ भाव उत्तर (North) दिशा की और होता है, सप्तम भाव पश्चिम(West) दिशा की और होता है और दशम भाव दक्षिण(South) दिशा की और होता है|
कुंडली में राहु और केतु गृह को छोड़ कर बाकी 7 ग्रह का किसी विशेष दिशा में बैठ जाने से उनको दिशाबल मिलता है अर्थात उनका अच्छा या बुरा फल देने का बल दोगुना हो जाता है| राहु और केतु की कोई दिशा नहीं होती इसलिए यदि यह गृह किसी दिशाबल वाले गृह के साथ बैठ जाएं तो इनको भी दिशाबल मिलने लगता है|
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आप ऊपर चित्र नंबर 2 में देख रहे हो कि कुंडली के केन्द्र भावों में कुछ गृह बैठे हुए हैं| यहाँ पर आप देख सकते हो कि कौन-कौन से गृह को किस दिशा में बैठे होने से दिशाबल मिलता है|
आपको  चित्र नंबर 2 के मुताबिक प्रत्येक दिशा के दिशाबल के बारे में आगे बताते हैं|

पूर्व दिशा(East Direction)- जैसा आपको पता है कि कुंडली के प्रथम भाव को पूर्व दिशा माना जाता है और यहाँ पर गुरु और बुध गृह यदि बैठ जाएं तो उन्हें दिशाबल मिलता है| बुध बुद्धि के कारक गृह होते हैं और गुरु ज्ञान के कारक गृह होते हैं| बुद्धि और ज्ञान हमारे मस्तिष्क से उत्पन्न होते हैं और कुंडली का प्रथम भाव हमारे मस्तिष्क को प्रभावित करता है|

उत्तर दिशा(North Direction):- कुंडली के चतुर्थ भाव को उत्तर दिशा माना जाता है और इस दिशा में चंद्र और शुक्र गृह बैठे हों तो उन्हें दिशाबल मिलता है| कुंडली में चतुर्थ भाव माता और सुख सुविधाओं का भाव होता है और चंद्र गृह माता का कारक होता है और शुक्र गृह सुख-सुविधाओं का कारक गृह माना जाता है| यदि इस दिशा में चंद्र या शुक्र में से कोई गृह आकर बैठ जाए तो उसे दिशाबल मिलने से उसकी अच्छा या बुरा फल देने की शक्ति दोगुनी हो जाती है|

पश्चिम दिशा(West Direction):- कुंडली के सप्तम भाव को पश्चिम दिशा माना जाता है| इस दिशा में शनि गृह को दिशाबल मिलता है| जैसे सूर्य के पश्चिम दिशा में डूबने से अंधेरा हो जाता है और शनि गृह को अँधेरे का कारक माना जाता है|

दक्षिण दिशा(South Direction):- कुंडली में दशम भाव को दक्षिण दिशा माना जाता है| कुंडली में सूर्य और मंगल को दक्षिण दिशा में दिशाबल मिलता है| अपने देखा होगा कि सूर्य पूर्व दिशा से निकलकर जब दक्षिण दिशा में आता है तो उसकी गर्मी कितनी बढ़ जाती है, ऐसे ही कुंडली में भी सूर्य दशम भाव अर्थात दक्षिण दिशा में दिशाबल मिलने से बली हो जाता है|मंगल गृह को भी इस दिशा में दिशाबल मिलता है| यह दोनों गृह ऊर्जा के कारक गृह हैं और मंगल रक्त का कारक गृह भी है और जब हमारे शरीर में ऊर्जा मिलने से रक्त प्रवाहित होता है तो हमें कार्य करने की शक्ति मिलती है|

दिशाबल के प्रभाव:- यदि किसी कुंडली में किसी गृह को दिशाबल मिलता है तो वह कुंडली में अपनी स्थिति के अनुसार अपने दोगुने फल देता है अर्थात यदि कुंडली में कोई गृह अशुभ फल देने वाला(मारक गृह) होगा तो उसको दिशाबल मिलने पर आपके अशुभ फलों में बढ़ोतरी हो जाएगी और यदि कोई गृह शुभ फल देने वाला( मारक) होगा तो उसको दिशाबल मिलने पर आपको दोगुने शुभ फल मिलेंगे|

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