कुंडली में योग कारक ग्रह, अकारक ग्रह और मारक ग्रह
Yog Karak Grah, Akarak Grah and Marak Grah
यदि आपको कुंडली में योग कारक ग्रह और मारक ग्रह की पहचान करनी आ गई तो समझ लीजिए कि आपको कुंडली का 50 प्रतिशत विश्लेषण करना आ गया| इस विष्य को पढ़ने से पहले आपको कुंडली के 12 भाव, कुंडली की 12 राशियां और उनके स्वामी के बारे में पता होना चाहिए, इसलिए यदि आपको इन सभी विषयों की जानकारी नहीं है तो आप पहले Free Astrology Classes पर क्लिक करके इन विष्यों को गहराई से समझ लेना है, फिर ही आप कुंडली में योग कारक गृह और मारक गृह की पहचान कर सकोगे|
कुंडली में लग्नेश, त्रिकोण, केंद्र, त्रिषडाये और त्रिक भाव- ज्योतिष को समझने से पहले आपको कुंडली में लग्नेश, त्रिकोण, केंद्र, त्रिषडाये और त्रिक भाव का ज्ञान होना चाहिए। ज्योतिष शास्त्र में सबसे पहले पराशरी नियमों का ज्ञान होना आवश्यक होता है और पराशरी नियमो को समझने के लिए आपको उकत भावों का गहराई से ज्ञान होना चाहिए। अब आपको विस्तार से समझते हैं।
जैसा आप चित्र नंबर 1 में देख रहे हैं कि कुंडली में जो प्रथम भाव होता है उसको लग्नेश भाव कहते हैं और यह कुंडली का सबसे महत्वपूर्ण भाव होता है क्यूंकि इसको व्यक्ति का स्वं का भाव कहते हैं। इस प्रथम भाव लग्नेश भाव होने के साथ-साथ त्रिकोण भाव और केंद्र भाव भी होता है। इसलिए लग्न भाव सदैव शुभ माना जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि लग्नेश भाव और त्रिकोण भाव सदैव शुभ माने जाते हैं। जैसे आप ऊपर प्रथम भाव, पंचम भाव और नवम भाव को देख रहे हैं यह तीनो त्रिकोण भाव कहलाते हैं। इसलिए यह तीनो भाव शुभ माने जाते हैं और इस भाव में जो भी राशियां आएंगी उन राशियों के स्वामी सदैव कुंडली में शुभ परिणाम देने वाले होंगे। मगर यहाँ पर आपको बता दें कि कई बार शुभ भाव के स्वामी भी अशुभ फल देने लगते हैं उसको आगे विस्तार से समझते हैं, अभी आप कुंडली में भावों को समझे।
जैसे आपने ऊपर पढ़ा कुंडली में सदैव त्रिकोण भाव अर्थात प्रथम, पंचम भाव और नवम भाव के स्वामी ग्रह शुभफलदाई होते हैं। यहाँ पर आपको बता दें कि कुंडली में लग्न (प्रथम), पंचम और नवम भाव में जो भी नंबर लिखे होते हैं वह राशियों के नंबर होते हैं और उन राशियों के स्वामी ग्रह को हम कुंडली के शुभ ग्रह मानेंगे। यदि आपको कुंडली में राशि कैसे देखी जाती है उसका ज्ञान नहीं है तो आप हमारे लेसन 'कुंडली में 12 राशियां' के ऊपर क्लिक करके जानकारी हासिल कर सकते हैं।
अब आपको यह तो पता चल गया होगा के कुंडली के त्रिकोण भाव सदैव शुभ होते हैं। अब आप ऊपर देखें दूसरे और सप्तम भाव को मारक भाव कहते हैं। आगे हम पढ़ेंगे कब मारक ग्रह प्रबल मारक होते हैं, कब कम मारक होते हैं और कब दूसरे और सातवें के स्वामी होते हुए भी मारक का प्रभाव नहीं देते।
उसके बाद आप चित्र नंबर 1 में देखें तीसरे भाव, छठे भाव और गियारवें (एकादश) भाव को त्रिषडाये भाव कहते हैं। कुंडली में त्रिषडाये भाव को शुभ नहीं माना जाता है। इसके बारे में भी आपको आगे समझते हैं कब त्रिषडाये भाव शुभ और कब अशुभ होते हैं।
अब चित्र नंबर 1 में देखें कुंडली में प्रथम भाव (लग्न भाव), चौथे भाव, सप्तम भाव और दशम भाव को केंद्र भाव कहा जाता है। कुंडली में यह भाव भी शुभ माने जाते हैं। मगर यहाँ पर आपको बता दें सप्तम भाव केंद्र होने के साथ साथ मारक भाव भी होता है। इसलिए यहाँ पर भी आपको आगे विस्तार से समझायेंगे कि कब केंद्र भाव के स्वामी ग्रह शुभ होते हैं और अब अशुभ।
इसके बाद आखिर में कुंडली में छठे भाव, अष्टम भाव और द्वादश भाव (बाहरवें भाव) को त्रिक भाव कहा जाता है। वैसे तो कुंडली में यह भाव अशुभ माने जाते हैं, मगर यहाँ पर भी जरुरी नहीं कि इस भाव के स्वामी ग्रह भी सदैव अशुभ फल ही दें। अब हम एक एक करके कुंडली के भावों और उनके स्वामी ग्रह के बारे में समझते हैं।
कुंडली में योग कारक और कारक ग्रह (Benefic Planets in Kundali)- अब हम आपको कुंडली में योग कारक और कारक ग्रहों की पहचान कराना सिखाते हैं। जैसे आप ऊपर योग कारक और कारक ग्रह का ऊपर चित्र देख रहे हैं सबसे पहले किसी भी जन्म कुंडली (लग्न कुंडली) में आपको देखना है कि कुंडली के लग्न भाव अर्थात प्रथम भाव में कौन सी राशि है। जैसे ऊपर चित्र में लग्न भाव में 4 नंबर लिखा है इसका अर्थ है लग्न भाव में कर्क राशि है। अब हमें यह ज्ञात हो गया है कि यह कुंडली कर्क लग्न की कुंडली है। अब हम आगे देखेंगे कि इस कुंडली में कौन से ग्रह योग कारक और कारक हैं। कुंडली में कारक ग्रह उनको कहा जाता है जो शुभ भावों के स्वामी हों और जो हमें शुभ फल प्रदान करने वाले ग्रह हो। सबसे पहले आपने लग्न भाव (प्रथम भाव) को देखना है और जो भी राशि लग्न भाव में आएगी उसके स्वामी को हम लग्न का स्वामी अर्थात लग्नेश कहते हैं और कुंडली में सबसे शुभ ग्रह लग्नेश होता है। इस तरह से आप जो ऊपर कुंडली देख रहें हैं उसमें लग्न भाव में 4 नंबर लिखा है, यहाँ पर 4 नंबर का अर्थ है कर्क राशि और कर्क राशि का स्वामी चंद्र होता है। इस तरह से इस कुंडली का सबसे पहले शुभ अर्थात कारक ग्रह चंद्र ग्रह हुआ। उसके बाद जैसे आपको ऊपर बताया गया था कि कुंडली में त्रिकोण भावों अर्थात पंचम और नवम भाव के स्वामी ग्रह कारक होते हैं। अब जैसे आप ऊपर चित्र में पंचम भाव में 8 नंबर राशि देख रहें हैं और 8 नंबर राशि का अर्थ होता है वृश्चिक राशि और इसका स्वामी मंगल होता है। अब इस कुंडली में पंचम भाव में मंगल की राशि आने से यह कुंडली का कारक ग्रह बन गया। अब इसके बाद आपने मंगल ग्रह की दूसरी राशि देखनी है कि वह कौन से भाव में पड़ रही है। अब इस कुंडली में मंगल की दूसरी राशि मेष दशम भाव में पड़ रही है। जैसे आप ऊपर चित्र में देख सकते हैं कि दशम भाव में 1 नंबर लिखा है और 1 नंबर मेष राशि का होता है जो मंगल की राशि होती है। अब आपको बता दें कि यदि किसी ग्रह की एक राशि त्रिकोण भाव अर्थात पंचम और नवम में आ रही हो और उसी ग्रह की दूसरी राशि किसी केंद्र भाव अर्थात चौथे, सातवें और दसवें भाव में आ जाए तो वह ग्रह कुंडली का योग कारक ग्रह बन जाता है। सूर्य और चंद्र ग्रह को छोड़कर बाकी पांच ग्रहों की 2 राशियां होती हैं और यदि किसी भी लग्न कुंडली में किसी ग्रह की एक राशि त्रिकोण अर्थात पंचम और नवम भाव में आ जाए और दूसरी राशि केंद्र भाव में अर्थात चौथे भाव, सातवें भाव और दशम भाव में आ जाए तो वह ग्रह लग्नेश के बाद कुंडली का सबसे शुभ ग्रह माना जाता है। जैसे ऊपर कुंडली में मंगल की एक राशि पंचम भाव में और दूसरी राशि दशम भाव में होने से यह कुंडली का योग कारक ग्रह होता है।
इसके बाद यदि हम ऊपर कुंडली में नौवें (त्रिकोण) भाव में देखें तो यहाँ पर 12 नंबर लिखा है जिसका अर्थ हुआ कि यह मीन राशि है और मीन राशि का स्वामी ग्रह गुरु होता है अब हमें गुरु ग्रह की दूसरी राशि धनु देखनी है कि वह कौन से भाव में पड़ रही है। जैसे आप ऊपर चित्र में देख सकते हैं कि गुरु की दूसरी राशि धनु कुंडली के छठे भाव में पड़ रही है। इस तरह से गुरु त्रिकोण भाव अर्थात नौवें भाव का स्वामी होकर योग कारक तो हुआ मगर उसकी दूसरी राशि केंद्र भाव अर्थात चौथे, सातवें और दसवें भाव में ना आने से वह योग कारक नहीं हुआ। इस कुंडली में गुरु लग्नेश चंद्र ग्रह का मित्र और नौवें (त्रिकोण) का स्वामी होने से कारक तो है मगर साथ में छठे (त्रिक और त्रिषडाये) बुरे भाव का स्वामी भी है। अब इस कुंडली में गुरु अपनी स्थिति के अनुसार शुभ फल के साथ साथ कुछ अशुभ फल भी दे सकता है। मगर यहाँ पर गुरु ग्रह की कुंडली में स्थिति देखना अनिवार्य हो जाता है।
जैसे आप जान चुके हैं कि कुंडली में योग कारक और कारक ग्रहों की पहचान कैसे की जाती है और यहाँ पर आपकी जानकारी के लिए आपको बता दें कि यदि कोई नैसर्गिक क्रूर ग्रह कुंडली में योग कारक या कारक बन भी जाए तब भी वह गैरह अपना स्वाभाव नहीं छोड़ता है जैसे ऊपर कुंडली में मंगल पंचम और दशम भाव का स्वामी होने के कारण योग कारक तो है मगर साथ में नैसर्गिक (स्वाभाविक) तौर से क्रूर भी है इस तरह से मंगल के जो कारकत्व होंगे उसका प्रभाव मंगल की स्थिति के अनुसार जरूर मिलेगा। उदाहरण के लिए यदि इस कुंडली में मंगल लगन भाव में होगा और साथ में बलि भी होगा तो व्यक्ति का क्रोध वाला जरूर बनाएगा, मगर लगन भाव में बैठ कर शुभ फल ही देगा। अब आपको यह तो समझ आ गया होगा कि कुंडली में हम कारक ग्रहों (शुभ ग्रहों) की पहचान कैसे कर सकते हैं। अब हम आगे प्रबल मारक और मारक के बारे में समझते हैं।
यह Lesson कल सुबह (26.09.2022) तक सम्पूर्ण होगा, कृपा कल तक इंतज़ार करें
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Ek rashi 10 house mein hai ( vrishchak) aur ek rashi (mesh) 3rd house mein aur inn rashi ke malik mangal 5th house mein hai toh mangal kya hongai karak , marak ya phir sam ??? Plz batane ka kast kare.
ReplyDeleteRana Harishankar ji आप जैसा विवरण हमें बता रहें हैं, उसके हिसाब से आपकी लग्न कुंडली कुंभ लग्न की हुई और इस कुंडली में मंगल की एक राशि मेष कुंडली के तृत्य भाव(त्रिषडाय भाव) में है और दूसरी राशि केंद्र के दशम भाव में है,, इसलिए मंगल इस कुंडली में मारक ग्रह हुआ,, अब मंगल बैठा किस भाव में है, उसके ऊपर किन ग्रहों की दृष्टि है, उसका बल कितना है, चलित में वह अपना भाव तो नहीं बदल रहा,, यह सभी बातों पर भी विचार करना जरुरी है,, मगर मंगल इस कुंडली में है मारक ही
Deleteye sum hua
ReplyDeleteDhanyawad.. Mesh lagn me Mangal grah karak hoga na kyuki wo lagnesh ka swami hai
ReplyDeleteMera kark lagn hai. Yog karak Mangal 8th house me hai. Shani, Budh, surya bhee hain wahan.
ReplyDeleteKripya batayen.
Rajnee dob 14 0ct 1978 time 12.55 pm meerut
ReplyDeleteAgar koi yog karak grah 3,6,8 ya 12 ghar mein baitha ho par wo waha utch ka ho to wo achha fal dega ya bura
ReplyDeleteकुंडली के इन त्रिक भावों(6, 8, 12) में यदि कोई उच्च का गृह या योग कारक गृह भी बैठा हो तो वह भी बुरा फल ही देता है|
DeleteMera shukra 8th house me baitha hai ketu ke sath to sukra karak garah hai ya marak garah hai?
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